शारिरिक मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ (समस्या-विहीन) होना स्वास्थ्य है ।।
समग्र स्वास्थ्य की परिभाषा
साथ ही सिर्फ शारीरिक फिटनेस ही स्वस्थ होने का एकमात्र आधार नहीं है , स्वस्थ होने का मतलब मानसिक और भावनात्मक रूप से फिट होना है।
स्वस्थ रहना आपकी समग्र जीवन शैली का हिस्सा होना चाहिए। एक स्वस्थ जीवन शैली जीने से पुरानी बीमारियों और दीर्घकालिक बीमारियों को रोकने में मदद मिल सकती है। अपने बारे में अच्छा महसूस करना और अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना आपके आत्म-सम्मान और आत्म-छवि के लिए महत्वपूर्ण है। अपने शरीर के लिए जो सही है उसे करके स्वस्थ जीवनशैली बनाए रखें ।
इस प्रकार स्वास्थ्य के आयाम अलग अलग टुकड़ों की तरह है। अतः अगर हम अपने जीवन को कोई अर्थ प्रदान करना चाहते है तो हमें स्वास्थ्य के इन विभिन्न आयामों को एक साथ फिट करना पड़ेगा। अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना समग्र स्वास्थ्य का नाम है जिसमें अन्तर्गत शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य , बौद्धिक स्वास्थ्य, आध्यात्मिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्वास्थ्य शामिल है।
शारीरिक स्वास्थ्य शरीर की स्थिति को दर्शाता है जिसमें इसकी संरचना, विकास, कार्यप्रणाली और रखरखाव शामिल होता है। यह एक व्यक्ति का सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए एक सामान्य स्थिति है। यह एक जीव के कार्यात्मक और/या चयापचय क्षमता का एक स्तर भी है।
1 संतुलित आहार की आदतें, मीठी श्वास व गहरी नींद ,बड़ी आंत की नियमित गतिविधि व संतुलित शारीरिक गतिविधियां , नाड़ी स्पंदन, रक्तदाब, शरीर का भार व व्यायाम , सहनशीलता आदि सब कुछ व्यक्ति के आकार, आयु व लिंग के लिए सामान्य मानकों के अनुसार होना चाहिए।
2 शरीर के सभी अंग सामान्य आकार के हों तथा उचित रूप से कार्य कर रहे हों।
3 पाचन शक्ति सामान्य एवं सक्षम हो।
4 साफ एवं कोमल स्वच्छ त्वचा हो।
5 आंख नाक, कान, जिव्हा, आदि ज्ञानेन्द्रियाँ स्वस्थ हो।
6 जिव्हा स्वस्थ एवं निर्मल हो दांत साफ सुथरें हो मुंह से दुर्गंध न आती हो।
7 समय पर भूख लगती हो।
8 शारीरिक चेष्टा सम प्रमाण में हो जिसका मेरुदण्ड सीधा हो चेहर पर कांति ओज तेज हो कर्मेन्द्रिय (हाथ पांव आदि) स्वस्थ हों।
9 मल विसर्जन सम्यक् मात्रा में समय पर होता हो।
10 शरीर की उंचाई के हिसाब से वजन हो।
11 शारीरिक संगठन सुदृढ़ एवं लचीला हो।
★ 2. मानसिक स्वास्थ्य=
मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ हमारे भावनात्मक और आध्यात्मिक लचीलेपन से है जो हमें अपने जीवन में दर्द, निराशा और उदासी की स्थितियों में जीवित रहने के लिए सक्षम बनाती है। मानसिक स्वास्थ्य हमारी भावनाओं को व्यक्त करने और जीवन की ढ़ेर सारी माँगों के प्रति अनुकूलन की क्षमता है।
1 प्रसन्नता, शांति व व्यवहार में प्रफुल्लता आत्म-संतुष्टि हो (आत्म-भर्त्सना या आत्म-दया की स्थिति न हो) ।
2 भीतर ही भीतर कोई भावात्मक संघर्ष न हो (सदैव स्वयं से युद्धरत होने का भाव न हो।)
3 मन की संतुलित अवस्था हो डर, क्रोध, इर्ष्या, का अभाव हो मनसिक तनाव एवं अवसाद ना हो।
4 वाणी में संयम और मधुरता हो कुशल व्यवहारी हो।
5 स्वार्थी ना हों
6 संतोषी जीवन की प्रवृति का वाला हो।
7 परोपकार एवं समाज सेवी की भावना वाला हो जीव मात्र के प्रति दया की भावना वाला हो।
8 परिस्थितियों के साथ संघर्ष करने की सहनशक्ति वाला तथा विकट परिस्थितियों में सांमजस्य बढाने वाला हो।
यह किसी के भी जीवन को बढ़ाने के लिए कौशल और ज्ञान को विकसित करने के लिए संज्ञानात्मक क्षमता है। हमारी बौद्धिक क्षमता हमारी रचनात्मकता को प्रोत्साहित और हमारे निर्णय लेने की क्षमता में सुधार करने में मदद करता है।
(1) समायोजन करने वाली बुद्धि, आलोचना को स्वीकार कर सके व आसानी से व्यथित न हो।
(2) दूसरों की भावात्मक आवश्यकताओं की समझ, सभी प्रकार के व्यवहारों में शिष्ट रहना व दूसरों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना ।
(3) नए विचारों के लिए खुलापन, उच्च भावात्मक बुद्धि हो।
(4) आत्म-संयम, भय, क्रोध, मोह, जलन, अपराधबोध या चिंता के वश में न हो। लोभ के वश में न हो ।
(5) समस्याओं का सामना करने व उनका बौद्धिक समाधान तलाशने में निपुण हो ।
★ 4. आध्यात्मिक स्वास्थ्य=
हमारा अच्छा स्वास्थ्य आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ हुए बिना अधूरा है। जीवन के अर्थ और उद्देश्य की तलाश करना हमें आध्यात्मिक बनाता है। आध्यात्मिक स्वास्थ्य हमारे निजी मान्यताओं और मूल्यों को दर्शाता है। अच्छे आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्राप्त करने का कोई निर्धारित तरीका नहीं है। यह हमारे अस्तित्व की समझ के बारे में अपने अंदर गहराई से देखने का एक तरीका है।
अष्टादशेषु पुराणेषु व्यासस्य वचन द्वयं ।
परोपकारः पुण्याय, पापाय परपीडनम्॥
अर्थात= अट्ठारह पुराणों में महर्षि व्यास ने दो बातें कहीं हैं - परोपकार से पुण्य मिलता है और दूसरों को पीड़ा देने से पाप।
1 प्राणी मात्र के कल्याण की भावना हो , "सर्वे भवन्तु सुखिनः" (सभी सुखी हों) का आचरण हो।
2 तन, मन, एवं धन की शुद्वता वाला हो।
3 परस्पर सहानुभूति वाला हो , परोपकार एवं लोककल्याण की भावना वाला हो।
4 प्रतिबद्वता, कर्त्तव्यपालन वाला हो , कथनी एवं करनी में अन्तर न हो ।
5 श्रेष्ठ चरित्रवान व्यक्तित्त्व हो , इन्द्रियों को संयम में रखने वाला हो।
6 योग एवं प्राणायाम का अम्यासी हो , पुण्य कार्यो के द्वारा आत्मिक उत्थान वाला हो , सकारात्मक जीवन शैली जीने वाला हो।
7 अपने शरीर सहित इस भौतिक जगत की किसी भी वस्तु से मोह न रखना , दूसरी आत्माओं के प्रभाव में आए बिना उनसे भाईचारे का नाता रखना।
8 समुचित ज्ञान की प्राप्ति की सतत इच्छा ।
★ 5. सामाजिक स्वास्थ्य=
चूँकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं अतः संतोषजनक रिश्ते का निर्माण करना और उसे बनाए रखना हमें स्वाभाविक रूप से आता है। सामाजिक रूप से सबके द्वारा स्वीकार किया जाना हमारे भावनात्मक खुशहाली के लिए अच्छी तरह जुड़ा हुआ है ।
1 समाज अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रहमचर्य एवं अपरिग्रही स्वभाव वाला हो।
2 प्रदूषणमुक्त वातावरण हो , वृक्षारोपण का अधिकाधिक कार्य हो , शुद्व पेयजल एवं पानी की टंकियों का प्रबंध हो।
3 मल-मूत्र एवं अपशिष्ट पदार्थों के निकासी की योजना हो , सुलभ शैचालय हो , सार्वजनिक स्थलों पर पूर्ण स्वच्छता हो।
4 जनसंख्यानुसार पर्याप्त चिकित्सालय हों , संक्रमण-रोधी व्यवस्था हो।
5 भय एवं भ्रममुक्त समाज हो , मानव कल्याण के हितों का समाज वाला हो , अपनी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार समाज के कल्याण के लिए कार्य करना।
6 खाद्य सामग्री की जनसंख्या के अनुपात में उपलब्धता हो , मौसमी फल एवं सब्जियों की उपलब्धता हो , खान-पान की सामाजिक पद्वतियाँ
7 समाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन में स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरण की स्थिति , जनंसख्या वृद्वि का समुचित नियंत्रण हो ।
सामाजिक रीति रिवाज एवं परम्परागत मान्यताएँ , अंधविश्वास एवं गलत धारणाओं से मुक्त समाज हो ।
अर्थात् =जिसके तीनों दोष (वात, पित्त एवं कफ) समान हों, जठराग्नि सम (न अधिक तीव्र,न अति मन्द) हो, शरीर को धारण करने वाली सात धातुएं (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और वीर्य) उचित अनुपात में हों, मल-मूत्र की क्रियाएं भली प्रकार होती हों और दसों इन्द्रियां (आंख, कान, नाक, त्वचा, रसना, हाथ, पैर, जिह्वा, गुदा और उपस्थ), मन और सबकी स्वामी आत्मा भी प्रसन्न हो, तो ऐसे व्यक्ति को स्वस्थ कहा जाता है।
आचार्य चरक के अनुसार स्वास्थ्य की परिभाषा-
दृढेन्द्रियो विकाराणां न बलेनाभिभूयते॥
क्षुत्पिपासातपसहः शीतव्यायामसंसहः।
समपक्ता समजरः सममांसचयो मतः॥
काश्यपसंहिता के अनुसार आरोग्य के लक्षण-
सुप्रसन्नेन्द्रियत्वं च सुखस्वप्न प्रबोधनम् ।
बलवर्णायुषां लाभः सौमनस्यं समाग्निता ॥
विद्यात् आरोग्यलिंङ्गानि विपरीते विपर्ययम् । -
अर्थात -भोजन करने की इच्छा, अर्थात भूख समय पर लगती हो, भोजन ठीक से पचता हो, मलमूत्र और वायु के निष्कासन उचित रूप से होते हों, शरीर में हलकापन एवं स्फूर्ति रहती हो, इन्द्रियाँ प्रसन्न रहतीं हों, मन की सदा प्रसन्न स्थिति हो, सुखपूर्वक रात्रि में शयन करता हो, सुखपूर्वक ब्रह्ममुहूर्त में जागता हो; बल, वर्ण एवं आयु का लाभ मिलता हो, जिसकी पाचक-अग्नि न अधिक हो न कम, उक्त लक्षण हो तो व्यक्ति निरोगी है , अन्यथा रोगी है।
स्वास्थ्य की रक्षा करने के उपाय बताते हुए आयुर्वेद कहता है- त्रय उपस्तम्भा: आहार: स्वप्नो ब्रह्मचर्यमिति (चरक संहिता सूत्र. 11/35)
एक विदेशी विद्वान् डॉ. बेनेडिक्ट जस्ट ने कहा है- 'उत्तम स्वास्थ्य वह अनमोल रत्न है, जिसका मूल्य तब ज्ञात होता है, जब वह खो जाता है।
एक शायर के शब्दों में- 'कद्रे-सेहत मरीज से पूछो, तन्दुरुस्ती हजार नियामत है।'
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक ;
1. आनुवंशिकता
2. पर्यावरण
4. रासायनिक
3. शिक्षा
4. जीवन शैली,
5. सामाजिक - आर्थिक स्थिति आदि।
मुख्य शारीरिक कारक जो नकारात्मक रूप से किसी व्यक्ति को प्रभावित करते हैं, शोर, विद्युत चुम्बकीय विकिरण, कंपन, विद्युत प्रवाह आदि ।
हम प्रत्येक नकारात्मक प्रकार के अलग-अलग प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।
शोर एक आवाज़ और ध्वनियों का जटिल समूह है शरीर में गड़बड़ी या बेचैनी का कारण बनता है, और कुछ मामलों में सुनने के अंगों को भी नुकसान पहुंचता है। इसलिए 35 (डेसिबल) डीबी का एक शोर अनिद्रा पैदा कर सकता है, 60 डीबी का शोर तंत्रिका तंत्र को परेशान कर सकता है, 90 डीबी की आवाज सुनवाई का नुकसान, स्थिति की अवसाद, या, इसके विपरीत, तंत्रिका तंत्र उत्तेजना की ओर जाता है। 110 डीबी से अधिक शोर नशा का कारण बन सकता है,
आनुवांशिक कारक
एक नियम के रूप में जहरीले या प्रदूषणकारी पदार्थों
कई मामलों में सब कुछ विकास पर निर्भर करता है ,एक विशेष देश में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा अच्छा है। इस वजह से सीधे आबादी के स्वास्थ्य और उनके जीवन की अवधि भी अच्छी होती हैं ।
योगासनों के नियमित अभ्यास से मेरूदंड सुदृढ़ बनता है, जिससे शिराओं और धमनियों को आराम मिलता है। शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग सुचारु रूप से कार्य करते हैं। प्राणायाम द्वारा प्राणवायु शरीर के अणु-अणु तक पहुंच जाती है, जिससे अनावश्यक एवं हानिप्रद द्रव्य नष्ट होते हैं, विषांश निर्वासित होते हैं- जिससे सुखद नींद अपने समय पर अपने-आप आने लगती है। प्राणायाम और ध्यान से मस्तिष्क आम लोगों की अपेक्षा कहीं ज्यादा क्रियाशील और शक्तिशाली बनता है।
योग करते रहना का प्रभाव यह होता है कि शरीर, मन और मस्तिष्क के ऊर्जावान बनने के साथ ही आपकी सोच बदलती है। सोच के बदलने से आपका जीवन भी बदलने लगता है। योग से सकारात्मक सोच का विकास होता है।
आदत बदलना जरूरी : योग द्वारा सच्चा स्वास्थ्य प्राप्त करना बिलकुल सरल है। अच्छा स्वास्थ्य हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। रोग और शोक तो केवल प्राकृतिक नियमों के उल्लंघन, अज्ञान तथा असावधानी के कारण होते हैं। खुशी और स्वास्थ्य के नियम बिलकुल सरल तथा सहज हैं। केवल अपनी कुछ गलत आदतों को बदलकर योग को अपनी आदत बनाएं।
शरीर के आसन और एलाइनमेंट को ठीक करता है
बेहतर पाचन तंत्र प्रदान करता है
आंतरिक अंग मजबूत करता है
अस्थमा का इलाज करता है
मधुमेह का इलाज करता है
दिल संबंधी समस्याओं का इलाज करने में मदद करता है
त्वचा के चमकने में मदद करता है
शक्ति और सहनशक्ति को बढ़ावा देता है
एकाग्रता में सुधार
मन और विचार नियंत्रण में मदद करता है
चिंता, तनाव और अवसाद पर काबू पाने के लिए मन शांत रखता है
तनाव कम करने में मदद करता है
रक्त परिसंचरण और मांसपेशियों के विश्राम में मदद करता है
वज़न घटाना
चोट से संरक्षण करता है
ये सब योग के लाभ हैं। योग स्वास्थ्य और आत्म-चिकित्सा के प्रति आपके प्राकृतिक प्रवृत्ति पर ध्यान केंद्रित करता है।
योग सत्र में मुख्य रूप से व्यायाम, ध्यान और योग आसन शामिल होते हैं जो विभिन्न मांसपेशियों को मजबूत करते हैं। दवाओं, जो हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, से बचने का यह एक अच्छा विकल्प है। योग एक चमत्कार है और एक बार पालन करने पर, यह आपको पूरे जीवन का मार्गदर्शन करेगा। प्रति दिन 20-30 मिनट योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के बीच संतुलन को बढ़ावा देकर लंबे समय में आपके जीवन को बदल सकता है।
एक व्यक्ति के मानसिक कल्याण में सुधार करता है। नियमित अभ्यास मानसिक स्पष्टता और शांति बनाता है जिससे मन को आराम मिलता है।
★कुछ सरल आसनों के लाभ इस प्रकार हैं-
पद्मासान – अतिरिक्त वसा समाप्त, शरीर का वजन संतुलित, ज्ञान मुद्रा में ईश्वरीय ध्यान, जंघाओं में लचक,आलस्य और कब्ज़ से मुक्ति, पाचन-शक्ति सुदृढ़
योग मुद्रा – मोटापा दूर होता है, पेट के समस्त विकारों से मुक्ति, मेरुदंड सुदृढ़
तुला आसन – शरीर में हल्कापन का अनुभव, शरीर लचकदार, संपूर्ण शरीर संतुलित
अर्द्ध चन्द्रासन – पाचनतंत्र सुचारू रूपेण कार्यरत, पेट के विकार दूर, मेरुदंड में लचीलापन, कर्म दर्द से मुक्ति
त्रिकोण आसन – पाचन तंत्र सुदृढ़, यकृत एवं क्लोम ग्रंथि सद्प्रभावित
सूर्य नमस्कार – 12 विभिन्न मुद्राओं के अनेकानेक लाभ होते हैं। शरीर का प्रत्येक बाह्य एवं आतंरिक अंग-प्रत्यंग सद्प्रभावित, मेरुदंड सुदृढ़, कमद लचकदार, पाचन तंत्र एवं नाड़ी संस्थान सशक्त, निम्न रक्तचाप से मुक्ति
शव-आसन – पूर्ण विश्राम की स्थिति, तनाव मुक्ति, मन शांत, आनंद का अनुभव, थकावट दूर, उच्च रक्तचाप से मुक्ति
ताड़ आसन – आलस्य से मुक्ति, शरीर में स्फूर्ति, बच्चों की ऊंचाई बढ़ाने में सहायक, नाभि का अपने स्थान पर रहना, रक्त संचरण सुचारू, कमर एवं पीठ दर्द से मुक्ति, मेरुदंड, घुटनों, एडि़यों, नितंबों, पेट, कंधों, हाथों को सशक्त होना
नौका आसन- मेरूदण्ड, कंधों, पीठ, हाथ पैरों में लचक, स्फूर्तिदायक, मोटापे से मुक्ति
कमर चक्र आसन - कमर में लचक, मोटापे से मुक्ति, हाथ पैरों में स्फूर्ति
जानुशिरासन - गुप्तांगों के पास रक्त भ्रमण, टांगों के दर्द दूर, जोड़ों के दर्द में राहत
पश्चिमोतानासन - हाथों और टांगों में शक्ति, मेरूदण्ड लचीला, कंधे मजबूत, पाचन तंत्रसशक्त, अच्छी भूख का अनुभव, मोटापे से मुक्ति, शरीर लचकदार
कोण आसन - ग्रीवा सृजन में लाभदायक, कमर में लचक, हाथ पैर, कंधे सशक्त,कब्ज से मुक्ति
गौमुख-आसन - कंधे और घुटने सशक्त, स्नायुमण्डल सुदृढ़़, मानसिक संतुलन, मेरूदण्ड सुदृढ़
वज्र आसन - सब आसनों के लिए पेट खाली होना चाहिए। लेकिन इस आसन को भोजन करने के पश्चात करने से भी बहुत लाभ पाचन तंत्र सुदृढ़ मेरूदण्ड सीधी कमर एवं कंधों के दर्द दूर, मानसिक संतुलन, ईश्वर ध्यान में मन
ऊष्ट आसन - विचार प्रक्रिया में स्थिरता, मानशांत में लाभकारी का नियंत्रण, छाती की मांसपेशियां सशक्त, मेरुदण्ड में लचीनालपन, अतिरिक्त वसा दूर पाचन तंत्र सदप्रभावित फेफड़ों की क्रियाशीलता में बढोतरी
सुप्त वज्रावसन- घुटनों कंधों एवं कमर में दर्द नहीं नाभि अपने स्थान पर, गुदों की क्रियाशीलता में बढ़ोतरी,मानसिक संतुलन, मोटापे से मुक्ति
शशांक आसन - नाड़ी संस्थान सुदृढ़, विश्राम, दया रोग में लाभदायक, मनशांत, कोध्र, ईर्ष्या एवं अहंकार का त्याग, ईश्वर के प्रति समपर्ण
शिथिल आसन - विश्राम, गहरी निद्रा चिन्तारहित मन तनाव से मुक्ति
सर्प आसन - मोटापे को दूर करता है, पाचन तंत्र सुदृढ़ अच्छी भूख का अनुभव, शरीर लचकदार
भुजंग आसन - गर्दन और मेरूदण्ड सुदृढ़ एवं लचकदार, गुर्दों, यकृत गर्भाशय, पेट फेफडों, हद्य एवं थाइरोइड के कार्यों में लाभदायक, पीठ के दर्द दूर, शरीर में लचक, गला में लाभदायक
शलभ आसन - मोटापे से मुक्ति, उच्च रक्तचाप एवं हदृय रोग से बचा, मेरूदण्ड सुदृढ़, स्नायुमंडल सशक्त, फेफड़ों की क्रियाशीलता में वृद्धि
धनुर आसन - गुर्दों, पीठ एवं नितंबों को सशक्त बनाता है। चयापचय एवं प्रण शक्ति की वृद्धिमेरूदण्ड सुदृढ़ एवं लचकदार, फेफड़े हदय गुर्दे, यकृत, आंतें, प्लीहा और पेट सभी लाभान्वित मुखमंडल पर तेजस्व पाचनतंत्र सक्रिय अतिरिक्त वसा से मुक्ति
हल आसन - नाड़ी संस्थान सशक्त, मेरुदण्ड लचकदार, थाइरोइड ग्रंथि लाभान्वित, मोटापे में कमी, रक्त संचरण सुचारू
उप आसन - पाचन तंत्र सुदृढ़ मोटापे से मुक्ति हाथ-पैर सशक्त, नाभि अपने स्थान पर स्नायु तंत्र सशक्त
मकर आसन - गुर्दों, यकृत एवं आंतों को सशक्त बनाता है, अपच एवं कब्ज दूर, टांगों और पीठ के कड़ेपन को दूर करता है और मेरूदण्ड की लचक में वृद्धि करता है, पीठ को आराम, घुटने, नितंब एवं मेरूदण्ड सशक्त डिस्क स्लिप में लाभदायक, पेट के समस्त रोग दूर, मोटापे में कमी, उच्च रक्तचाप एवं हदय रोग से मुक्ति, नाड़ी संस्थान प्रभावितउदर-पवन मुक्तासन – हृदय एवं फेफड़ें सशक्त, गैस और अम्लता से मुक्ति, पेट के समस्त रोग दूर,रक्त संचरण, गर्दन में लचक
सर्वांग आसन – थाइरोइड और पितुनारी ग्लैंड्स की क्रियाशीलता में वृद्धि, थकावट दूर, उदासी से मुक्ति, गर्दन,नेत्रों, कानों, फेफड़ों के में लाभकारी, गर्दन एवं सिर को रक्त आपूर्ति, मस्तिक क्रियाशीलता में वृद्धि,मेरुदंड लचकदार ।
★ षट्कर्म -
(अर्थात् 'छः कर्म') हठयोग में बतायी गयी छः क्रियाएँ हैं। (नेति, धौति, नौलि, बस्ति, कपालभाति, त्राटक )
षट्कर्म को शुद्धिक्रिया भी कहते हैं
"षट्कर्मणा शोधनं च-"
षटकर्म द्वारा सम्पूर्ण शरीर की शुद्धि होती है
षट्कर्म के बहुत सारे लाभ हैं। इसके कुछ महत्वपूर्ण फायदे का यहां जिक्र किया जा रहा है।
षट्कर्म या शोधन योग क्रिया एक ऐसी योगाभ्यास है जो शरीर को शुद्ध करने के में अहम् भूमिका निभाती है।
हठयोग के अनुसार शुद्धि क्रिया योग शरीर में एकत्र हुए विकारों, अशुद्धियों एवं विषैले तत्वों को दूर कर शरीर को भीतर से स्वच्छ करती है।
उच्चतर योग साधना की दिशा में यह एक पहला चरण है।
शुद्धिकरण योग शरीर, मस्तिष्क एवं चेतना पर पूर्ण नियंत्रण का भास देता है।
शोधन क्रियाएं स्वच्छ करने की क्रियाओं और तकनीकों की बात करता है, जिनसे शरीर भीतर से स्वच्छ होता है।
रोगों, विकारों तथा अशुद्धियों को शरीर से दूर करने के लिए पूरे शरीर के पूर्ण शुद्धिकरण की प्रक्रिया आवश्यक है। जहाँ षट्कर्म अहम भूमिका निभाता है।
जब शरीर में अत्यधिक विकार हो अथवा शरीर में वात, पित्त तथा कफ का असंतुलन हो तो प्राणायाम और योगासन से पूर्व षट्कर्म करना चाहिए।
प्राणायाम साधना आरंभ करने से पूर्व सबसे पहले नाड़ी शुद्ध होनी चाहिए जो षट्कर्म द्वारा करनी चाहिए।
जब शरीर शुद्ध होगा तो रासायनिक घटकों का अनुपात संतुलित रहेगा। इससे मस्तिष्क के कामकाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और शरीर तथा मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में सहायता मिलेगी।
■"मानव स्वास्थ्य पर षट्कर्म का प्रभाव"
षट्कर्म की छह प्रमुख क्रियाओं में..
★धौति (कुंजल एवं वस्त्रधौति) क्रिया संपूर्ण पाचन का शोधन करती है और साथ ही साथ यह अतिरिक्त पित्त, कफ, विष को दूर करती है तथा शरीर के प्राकृतिक संतुलन को वापस लाती है।
★वस्ति, शंखप्रक्षालन तथा मूलशोधन से आंतें पूरी तरह स्वच्छ हो जाती हैं, पुराना मल एवं कृमि दूर हो जाते हैं, पाचन विकारों का उपचार होता है।
★नेति क्रिया नियमित रूप से करने पर कान, नासिका एवं कंठ क्षेत्र से गंदगी निकालने की प्रणाली ठीक से काम करती है तथा यह सर्दी एवं कफ, एलर्जिक राइनिटिस, ज्वर, टॉन्सिलाइटिस आदि दूर करने में सहायक होती है। इससे अवसाद, माइग्रेन, मिर्गी एवं उन्माद में यह लाभदायक होती है।
★नौली क्रिया उदर की पेशियों, तंत्रिकाओं, आंतों, प्रजनन, उत्सर्जन एवं मूत्र संबंधी अंगों को ठीक करती है। अपच, अम्लता, वायु विकार, अवसाद एवं भावनात्मक समस्याओं से ग्रस्त व्यक्ति के लिए लाभदायक है।
★त्राटक नेत्रों की पेशियों, एकाग्रता तथा मेमोरी के लिए लाभप्रद होती है। इसका सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव मस्तिष्क पर होता है।
★कपालभाति बीमारियों से दूर रखने के लिए रामबाण माना जाता है। यह बलगम, पित्त एवं जल जनित रोगों को नष्ट करती है। यह सिर का शोधन करती है और फेफड़ों एवं कोशिकाओं से सामान्य श्वसन क्रिया की तुलना में अधिक कार्बन डाईऑक्साइड निकालती है। कहा जाता है कि कपालभाति प्रायः हर रोगों का इलाज है।
★"योग रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाता है" ।
वर्तमान के समय कोरोना वायरस (covid-19) के घातक आक्रमण और संक्रमण से संक्रमित होने पर प्राण रक्षा के लिए मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता एक सशक्त साधन (हथियार) बन गया है ।। कोरोना से बचने के लिए हम सभी को अपने घर पर ही प्राणायाम व योगिक क्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए। हमे प्रतिदिन एक घंटा योग अवश्य करना चाहिए। इन क्रियाओं में मुख्यत: भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम विलोम, उज्जाई, सूर्यनमस्कार, भुजंगासन, हलासन आदि योगिक क्रियाओं के प्रयोग तथा अच्छे खान पान से हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को सशक्त बना सकते हैं । आयुष मंत्रालय की सलाह के अनुसार प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट योगासन, प्राणायाम एवं ध्यान करें।