व्याकरण के उपदेश
1
धातुसूत्रगणोणादि वाच्यलिंगानुशासनम् ।
आगमप्प्रत्यादेशाः उपदेशाः प्रकीर्तिताः ।।
परशुराम जी का स्वरूप
2
अग्रतश्चतुरो वेदा: , पृष्ठतस्सशरं धनु: ।
इदंब्राह्ममिदं क्षात्रं , शापादपि शरादपि.।। =
सुभाषित
3
1
धातुसूत्रगणोणादि वाच्यलिंगानुशासनम् ।
आगमप्प्रत्यादेशाः उपदेशाः प्रकीर्तिताः ।।
परशुराम जी का स्वरूप
2
अग्रतश्चतुरो वेदा: , पृष्ठतस्सशरं धनु: ।
इदंब्राह्ममिदं क्षात्रं , शापादपि शरादपि.।। =
सुभाषित
3
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥
शैले शैले न माणिक्यं,मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो न ही सर्वत्र,चन्दनं न वने वने।
अर्थात् सब पर्वतों पर रत्न नहीं होता,मोती सब हाथियों में नहीं मिलता।न सज्जन लोग सब जगह होते हैं,न प्रत्येक वन में चन्दन होता है।
शैले शैले न माणिक्यं,मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो न ही सर्वत्र,चन्दनं न वने वने।
अर्थात् सब पर्वतों पर रत्न नहीं होता,मोती सब हाथियों में नहीं मिलता।न सज्जन लोग सब जगह होते हैं,न प्रत्येक वन में चन्दन होता है।
सुभाषित
चार उत्तम सीख
एकः स्वादु न भुञ्जीत एकश्चार्थान् न चिन्तयेत् ।
एको न गच्छेदध्वानं नैकः सुप्तेषु जागृयात् ।।
एकः स्वादु न भुञ्जीत एकश्चार्थान् न चिन्तयेत् ।
एको न गच्छेदध्वानं नैकः सुप्तेषु जागृयात् ।।
अर्थात - अकेले अकेले स्वादिष्ट व्यंजन नहीं खाना चाहिए , अकेले दधन कमाने के विषय में योजना नहीं बनानी चाहिए , अकेले (निर्जन स्थान) वनों में नहीं जाना चाहिए और बहुत सारे सोते हुए लोगों की सुरक्षा के लिए सिर्फ अकेले ही नहीं जगना चाहिए
।।ॐ।।
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥
भावार्थ:-- अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वती जी और गणेशजी की मैं वंदना करती हूँ 🙏
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